रॉकेट क्या है, यह जानना बेहद जरूरी है क्योंकि Rocket Science की वजह से ही हम पृथ्वी से बाहर जा सकते है। अंतरिक्ष बहुत बड़ी दुनिया है, और इस दुनिया में हमारी पृथ्वी की तरह अनेकों ग्रह व उपग्रह हैं। इन सब का अध्ययन केवल रॉकेट साइंस के आधार पर किया जा सकता है। इसलिए रॉकेट सांइस क्या है, इसे समझना बेहद जरूरी है।
भारतीय रॉकेट विज्ञान की बात करे तो वैज्ञानिक सतीश धवन ने अब तक का सबसे भारी और शक्तिशाली रॉकेट ‘जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉंच वेहिकल मार्क-3‘बनाया था। इसकी पीठ पर “जीसैट-19 सेटेलाइट उपग्रह” को अंतरिक्ष में ले जाया गया, जिसका वजन 3200 किलोग्राम था। आज इसी Rocket Science की वजह से हम घर बैठे टी.वी., इंटरनेट इत्यादि का मजा ले रहे है।
भारतीय रॉकेट साइंस में सबसे बड़ा नाम “APJ अब्दुल कलाम” का है। आज हमारी रॉकेट साइंस यानी ISRO काफी विकसित हो चुकी है, इसलिए हमारा भेजा गया सेटेलाइट मंगल ग्रह तक पहुंचा। रॉकेट विज्ञान बहुत ही अद्भुद है, इसलिए What is Rocket Science in Hindi, यह सिखना बेहद जरूरी है ताकि भविष्य में भारत देश को अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिक मिल सके।
इस लेख में हम रॉकेट विज्ञान और रॉकेट से संबंधित अनेक सवालों के जवाब प्राप्त करेंगे। जैसे- रॉकेट विज्ञान क्या है, रॉकेट क्या है, रॉकेट नोदन क्या है, प्रथम रॉकेट का नाम क्या है, रॉकेट अंतरिक्ष में कैसे जाता है, रॉकेट की गति कितनी होती है, एक रॉकेट मे कितने लोग बैठ सकते है इत्यादि। चलिए अब हम Rocket Science in Hindi में चर्चा को शुरू करते है।
रॉकेट क्या है और रोकेट नोदन क्या है?
Rocket शब्द की उत्पति एक ईटालियन शब्द “Rocchetta” से हुई है, जिसका मतलब ऐसी सिलेंडर नुमा वस्तु से है जिस पर धागे लपेटे जाते है। यह रॉकेट एक सिलेंडर के आकार का होता है, जिसमें काफी मात्रा में गैसीय ईंधन होता है। रॉकेट में जैसे-जैसे गैसों का मिश्रण जलता जाता है, तो वह रॉकेट उतनी ही तेज गति से आगे बढ़ता है।
कुछ लोग रॉकेट और एयरोप्लान को एक समझने की कोशिश करते है, लेकिन इन दोनों में काफी बड़ा अंतर है। एयरोप्लान केवल धरती पर ऑक्सीजन की उपस्थिति में उड़ता है। और यह कभी भी पृथ्वी की ऑक्सीजन युक्त सतह से ज्यादा उपर नही जाता है क्योंकि एयरोप्लान में इंधन को जलने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है।
लेकिन रॉकेट पृथ्वी से बाहर अंतरिक्ष में जाता है हालांकि रॉकेट के ईंधन को जलाने के लिए भी ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इसलिए रॉकेट में ईधन जलाने के लिए जरूरी ऑक्सीडाइजर साथ में लिया जाता है। रॉकेट बहुत उंचाई तक बिना ऑक्सीजन वाले क्षैत्र में उड़ सकता है। इसके अलावा यह रॉकेट निर्वात में भी उड़ता है।
निर्वात : एक ऐसी जगह जहां पर जहां पर कोई पदार्थ या दबाव नही होता है। ऐसे क्षैत्र में मौजुद किसी भी कण या वस्तु पर कोई प्रभाव नही पड़ता है। उदाहरण के लिए अंतरिक्ष एक निर्वात क्षैत्र है, इसलिए जब लोग रोकेट में जाते है तो रॉकेट की हर वस्तु उड़ती है।
रोकेट नोदन क्या है?
रॉकेट नोदन यानी रॉकेट के उड़ने का सिद्धांत न्यूटन के तीसरे नियम पर आधारित है। न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार किसी वस्तु पर बल लगाने से वस्तु भी विपरित बल लगाती है, मतलब एक क्रिया के प्रति विपरित प्रतिक्रिया प्रदर्शित होती है। रॉकेट नोदन भी इसी सिद्धांत पर कार्य करता है।
रॉकेट को जब उड़ाया जाता है तो रॉकेट अपने गैसीय ईंधन को जलाता है और यह जली हुई गैसे रॉकेट की पिछले भाग से बलपूर्वक निकाली जाती है। तो इसके विपरित गैसे भी रॉकेट पर बल लगाती है। इससे रॉकेट पर आगे की ओर प्रणोद बल लगता है और रॉकेट आगे की ओर उड़ता है।
रॉकेट विज्ञान क्या है (Rocket Science in Hindi)– इसका इतिहास
रॉकेट साइंस, ऐसी साइंस को कहा जा सकता है जिसमें रॉकेट से संबंधित नयी खोज की जाती हो। रॉकेट विज्ञान का इतिहास सैकड़ो वर्ष पुराना है।
देखा जाए तो रॉकेट का पहला अविष्कार चीन में 12वीं सदी में हुआ था। शुरूआती समय में रॉकेट का प्रयोग युद्ध क्षैत्रों में अस्त्र-शस्त्र के रूप में किया गया था। सन् 1232 में चीन और मंगोलो के बीच के युद्ध में इन रोकेट का इस्तेमाल किया गया था।
ऐसा कहा जा रहा है कि मंगोलो के द्वारा यह तकनीक यूरोप और एशिया के अन्य भागो तक लाई गयी। टीपू सुल्तान और अंग्रोज बीच भी रॉकेट का प्रयोग हुआ था, लेकिन उस समय अंग्रेज रॉकेट के बारे में नही जाते थे इसलिए वे हार गये। इसके बाद से अंग्रेजों ने भी रॉकेट विज्ञान को समझा और फिर इन्होने अन्य युद्धों में इसका उपयोग किया।
रॉकेट कैसे उड़ता है – पूरी प्रक्रिया
रॉकेट कैसे उड़ता है, बहुत आसान Method है। रॉकेद नोदन संवेग संरक्षण नियम (न्यूटन का तीसरा नियम) पर आधारित होता है। इस रोकेट के दहन कक्ष में ईंधन को जलाया जाता है, जिससे उत्पन्न गैसों के मिश्रण को जैठ नली से बहुत ही तीव्र वेग से बाहर निकाला जाता है।
अब जितना बल इन गैसों पर लगता उतना ही बल वापिस गैसे प्रतिक्रिया बल के रूप में रॉकेट पर पुन: लगाती है। फलस्वरूप रॉकेट पर प्रणोद बल लगता है और रॉकेट उपर की ओर उड़ता है। इसी को रॉकेट विज्ञान कहा जाता है।
उदाहरण : अगर हम किसी बंदुक से गोली मारते है तो बंदुक चलाने पर दो बल लगते है। एक बल के कारण गोली आगे की ओर जाती है। और दूसरा बल गोली के कारण बिंदुक के पीछले वाले भाग पर लगता है, जिससे बंदुक हमारे उपर बल लगाती है। इसलिए गोली चलाते समय बंदुक का पिछला कंधे पर मजबूती से रखा जाता है।
रॉकेट अंतरिक्ष में कैसे जाता है- रॉकेट उड़ने की पूरी प्रक्रिया
अब तक हम जान चुके है कि रॉकेट क्या है और रॉकेट विज्ञान क्या है? लेकिन रॉकेट वास्तव में कैसे उड़ता है। रॉकेट दो तरह के होते है, ठोस और तरल रॉकेट प्रणोदक। ठोस ईंधन जलने के बाद अवशेष बचाता है, इसलिए अब तरल ईंधन का काफी ज्यादा उपयोग होने लगा है।
रॉकेट ईंधन में मुख्य दो गैसे होती है, एक तरल हाइड्रोजन गैस जिसे 253 डिग्री सेल्सियस पर ठंडा करके बनाया जाता है। और दूसरी ऑक्सीजन गैस जिसे 183 डिग्री सैल्सियस पर ठंडा करके बनाया जाता है। यहां पर ऑक्सीजन ऑक्सीडाइजर होता है, जिसकी उपस्थिति में इंधन जलता है। ये दोने अलग-अलग टैंक में होते है।
- Fuel Tank में तरल रॉकेट ईंधन यानी तरल हाइड्रोजन होता है।
- Oxidizer Tank में तरल ऑक्सीजन होती है।
- Pumps दोनों टैंक से हाइड्रोजन व ऑक्सीजन को दहन चैंबर (Nozzle) तक ले जाते है।
- Nozzle दहन चैंबर होता है, जहां ऑक्सीजन की उपस्थिति में हाइड्रोजन जलता है।
- इसके बाद इस गर्म गैस को बहुत पतली नलिका से गुजारा जाता है। इससे गैस पर बहुत ज्यादा दाब बन जाता है।
- अंतिम चरण में इस गर्म अपशिष्ट गैस को Fin से बाहर निकाला जाता है। उच्च संवेग से निकलने वाले गैस रॉकेट पर विपरित बल डालती है, और रॉकेट उपर की और गति करता है।
ध्यान दे कि प्रत्येक रॉकेट में सिर्फ एक इंजन नही होता है, बल्कि उसके साथ अनेक इंजन जुड़े होते है जो एक के बाद एक जलने के बाद छोड़ दिये जाते है। जैसे एयरोस्पेस कंपनी SpaceXका एक रॉकेट “SpaceX Falcon 9” दो चरणों वाला रॉकेट था, जिसमें पहले चरण में कुल 9 इंजन थे और दूसरे चरण में केवल एक इंजन था।
ईंजन का पहला चरण वायुमंडली दाब को झेलते हुए रॉकेट के भार के साथ-साथ पेलोड को वायुमंडल से बाहर तक ले जाता है। इसके लिए यह रॉकेट का सबसे शक्तिशाली और भारी भाग होता है।
धरती के वायुमंडल से बाहर आने के बाद पहले चरण का काम पूरा हो जाता है, जिसे पैराशूट की मदद से धरती पर छोड़ दिया जाता है। अब दूसरा इंजन चालू हो जाता है जो अंतरिक्ष में उड़ने में मदद करता है।
भारतीय रॉकेट विज्ञान बैलगाड़ी से मंगल तक
भारत का रॉकेट विज्ञान काफी उद्दभुत था। हमारा पास ज्यादा विकसित तकनीक नही थी और न ही ज्यादा धन था, लेकिन फिर हम मंगल ग्रह तक पहुंचे। देखा जाए तो भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम 60 के दशक में शुरू हुआ था। उस समय ऐपल सैटेलाइट को प्रक्षेपण के लिए बैलगाड़ी पर ले गये थे।
- भारतीय रॉकेट साइंस से जुड़ा एक बहुत बड़ा नाम पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का है। रॉकेट विज्ञान में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा था। इन्होने पूरी जिंदगी रॉकेट विज्ञान पर काम किया।
- सर्वप्रथम भारत में थुंबा को रॉकेट लॉंचिंग सेंटर के रूप में चुना गया क्योंकि यहां पर भूचुंबकीय भूमध्य रेखा सीधी गुजरती है।
- भारत का पहला रॉकेट 21 नंवबर 1963 को लॉंच किया गया था, जो नाइक-अपाचे रॉकेट था, इसे अमेरिका से लिया गया था।
- भारत देश में पहला रॉकेट रोहिणी-75 बना था जिसे 20 नवंबर 1967 में लॉंच किया गया था।
- आर्यभट्ट भारत का पहला उपग्रह था, जिसका नाम भारत के खगोलविद् आर्यभट्ट पर रखा गया था। इस उपग्रह का वजन मात्र 360kg था।
- भास्कर-1 भारत देश का पहला रिमोट सैटेलाइट था, जो कैमरे की मदद से फोटो भेजता था।
- ISRO का पहला ऑपरेशनल लॉंच व्हीकल पोलर सैटेलाइट है, जिसे PSLV के रूप में जाना जाता है।
- इसके बाद इनसैट सिरीज के उपग्रह आए, जिन्होने भारत की संचार सेवाओं को काफी मजबूत बना दिया।
- चंद्रयान (2008 में) भी भारत का एक अद्भूत अविष्कार था। जिसकी वजह से चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की गयी थी।
- भारत पहले प्रयास में ही 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह पर पहुंचा था।
रॉकेट ईंधन क्या है, और इसके प्रकार कितने है ?
रॉकेट आम ईंधन जैसे गाड़ीयों वाला पेट्रोल, डिजल या कैरोसीन इत्यादि से नही उड़ता हैं, बल्कि इसमें एक विशेष प्रकार का ईंधन इस्तेमाल किया जाता है जिसे प्रणोदक (Propellants) कहते है।
प्रणोदक के जलने से कई गुना अधिक उर्जा एवं गैसे उत्पन्न होती हैं। Propellants का दहन बहुत जल्दी होता है, जिसके बाद कोई अवशेष नही बचता है। इस प्रणोदक के दहन के फलस्वरूप उत्पन्न गैसों को रॉकेट के पिछले भाग यानी जेट से बहुत तीव्रता से बाहर निकाला जाता है।
प्रणोदक या रॉकेट ईंधन तीन प्रकार के होते हैं-
- द्रव प्रणोदक: इसमें द्रव ईंधन इस्तेमाल किये जाते हैं, जैसे एल्कोहॉल, द्रव हाड्रोजन, द्रव अमोनिया, किरोसिन, हाइड्राजीन इत्यादि। यह सभी द्रव रूप में होते हैं।
- ठोस प्रणोदक: इस प्रकार के प्रणोदक में ठोस ऑक्सीकारक और ठोस अवकारक पदार्थ का मिश्रण होता है। इसमें विभिन्न हाइड्रोकार्बन तथा क्लोरेट, नाइट्रेट या परक्लोरेट जैसे ऑक्सीकारण होते है।
- मिश्रित प्रणोदक: यह द्रव ऑक्सीकारक और ठोस अवकारक दोनों के संयोग से निर्मित होता है। जैसे- एक्राइलिक रबर (अवकारक) और डाई नाइट्रोजन टेट्रा ऑक्साइडन (ऑक्सीकारक) द्रव का मिश्रण।
जेट इंजन और रॉकेट इंजन में अंतर
जेट इंजन रॉकेट इंजन से थोड़ा अलग होता है, क्योंकि जेट इंजन हवा की ऑक्सीजन लेकर काम करता है। जबकि रॉकेट इंजन में वह सभी चीजे मौजुद होती है, जिसकी जरूरत उसे उड़ने में होती है। मतलब यह बिना हवा में भी आसानी से उड़ सकता है।
भारत का प्रथम रॉकेट का नाम
भारत काफी अद्भुत है, जिसके पास पूरे संसाधन नही होने पर भी पहला रॉकेट लॉंच किया गया था। हमारे देश का पहला रॉकेट प्रक्षेपण स्थल तक साइकिल पर लाया गया था। और एक रोकेट को लॉंचिंग पैड तक एक बैलगाड़ी पर लाया गया था। आज देखे तो भारत मंगलयान और चंद्रयान तक पहुंच चुका है।
ISRO की स्थापना भारतीय वैज्ञानिक साराभाई ने 1969 में की थी। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरूआत 1962 में मानी जाती है। 21 नवंबर 1963 में भारत का पहला रॉकेट केरल राज्य के तिरूवंतपुरण के निकट एक थुंबा नामक छोटे से गांव में लॉंच किया गया था।
- इसके बाद कई 1975 में पहला उपग्रह लॉंच किया गया।
- 2008 में भारत का पहला चद्रयान-1 सफलतापूर्वक पूरा हुआ।
- और 2014 में पहले पर्यास में भारत मंगल ग्रह पर पहुंचा था।
भारत का प्रथम रॉकेट का नाम “नाइक-अपाचे” रॉकेट था, जो अमेरिका से लिया गया था।
भारत भी रॉकेट विज्ञान में आगे है, कैसे
हम जानते है कि भारत लगातार एक के बाद एक सफल प्रयोग कर रहा है। हाल ही में भारत का चंद्रयान-2 लॉंच किया गया था, और अब भी अंतरिक्ष में जाने की तैयारी की जा रही है। भारत रॉकेट साइंस में इतना आगे कैसे है, इसके चार प्रमुख कारण हैं।
#1. कम खर्च में सफल रॉकेट बनाना
भारतीय वैज्ञानिक अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम बजट में रॉकेट को तैयार करते है और रॉकेट बनाने में सफल भी होते है।
#2. अंतरिक्ष उद्योग में भारत
अंतरिक्ष उद्योग में 75% हिस्सेदारी अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे बड़े विकसित देशों के पास है। लेकिन अब भारत देश भी आगे आ चुका है। पहले भारत रूस या फ्रांस जैसे शहरो पर निर्भर रहता था, लेकिन अब बात कुछ अलग ही है।
#3. बदलते बाजार में भारत
भारत अब बिल्कुल भी पीछे नही है, मतलब भारत भी बदल रहा है। हम जानते है कि मौसम और संचार के लिए ज्यादातर सैटेलाइट 4 टन भारी होते है और इसके लिए बड़े रॉकेट की जरूरत होती है। भारतीय JSLV Mark 3 एक विशाल रॉकेट के प्रक्षेपण में कामयाब रहा है। इस रोकेट साथ भारत का जीसैट 19 संचार सैटेलाइट लॉंच किया गया था।
#4. भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा
हमारे देश की रॉकेट साइंस इतनी अद्भुत है कि हम बहुत कम खर्च में भी सफल रोकेट बना सकते है। इसी कारण आज भारत अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा हासिल कर चुका है। NASA भी भारत के रॉकेट विज्ञान की तारिफ कर चुका है।
FAQ’s Of Rocket in Hindi
भारत के कुछ प्रमुख रॉकेट निम्नलिखित हैं-
अग्नि 6
अग्नि 5
अग्नि 4
K 5
K 4
ऐसा माना जा रहा है कि रॉकेट के इतिहास की शुरूआत 12वीं सदी में सबसे पहले चीन में हुई थी। दुनिया में सबसे पहले रॉकेट की खोज चीन में हुई थी। सन् 1232 में चीन और मंगोलो के युद्ध के बीच इन रॉकेट का इस्तेमाल अस्त्र शास्त्र के रूप में किया गया था।
देखा जाए तो रॉकेट में बहुत कम लोगों को ही बैठाया जाता है, ताकि रॉकेट में फालतू का स्थान बहुत कम हो और ज्यादा से ज्यादा ईंधन को ले जाया जा सके। सामान्यत: एक रॉकेट में दो पायलेट होते है और इसके अलावा चार लोग और हो सकते है।
भारत देश में 1792 में मैसूर साम्राज्य के शासक टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध के समय सबसे पहले रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था।
इस एंग्लो-मैसूर यूद्ध में लोहे के आवरण वाले रॉकेट का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया था। इस युद्ध में टीपू सुल्तान जीते भी थे, लेकिन इसके बाद अंग्रजो ने रॉकेट तकनीक को पूरी दुनिया में फैला दिया।
लगभग सभी रॉकेट में सामान्यत: 3 चरण देखने को मिलते हैं, हालांकि अलग-अलग रॉकेट में अलग-अलग चरण होते हैं।
#1. इस चरण में धरती के वायुमंडल से बाहर निकलने के लिए एक से अधिक रॉकेट इंजन का उपयोग किया जाता है। और वायुमंडल से बाहर निकलने के बाद इस भाग को पैराशूट की मदद से धरती पर भेज दिया जाता है या फिर अंतरिक्ष में छोड़ दिया जाता है।
#2. प्रथम चरण में रॉकेट अंतरिक्ष में पहुंच जाता है और अंतरिक्ष में रॉकेट के पास केवल एक ही मुख्य इंजन रहता है। जो इसे अंतरिक्ष की कक्षों में स्थापित होने में मदद करता है।
#3. तीसरा चरण पेलोड का होता है।
रॉकेट की गति कितनी होती है?
जब रॉकेट को अंतरिक्ष में छोड़ा जाता है तो उस रॉकेट का वेग अलग-अलग होता है। लेकिन अंतरिक्ष में छोड़े हुए रॉकेट का वेग सामान्यत: 17500 kmph (स्पेस शटल) होता है।
निष्कर्ष
हमने इस लेख में रॉकेट क्या है, इस पर विस्तारपूर्वक चर्चा की है। और आपके साथ कुछ नयी और Interesting बाते आपके साथ सांझा की है। उम्मीद है कि आपके लिए हमारी जानकारीयां उपयोगी रहेगी और आप सभी लोगों ने यह पूरी तरह जान लिया होगा की रॉकेट साइंस क्या है? technology से जुड़े सवाल अगर आपके मन मे हैं, तो आप उस सवाल को नीचे कमेन्ट मे लिखकर पूछ सकते हैं, और इस लेख को अपने सभी दोस्तों और फैमिली के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करे, जो रॉकेट साइंस मे रुचि रखते है।